VIDEO : 3100 फीट की ऊंचाई पर शेखावाटी की शान, 'मैं हर्षनाथ हूं...'
सीकर। शेखावाटी को यूं तो पूरे देश में अपनी शानोशौकत भरी हवेलियों की वजह से पूरे देश में जाना जाता है, लेकिन यहां इन ऐतिहासिक हवेलियों के अलावा भी बहुत कुछ ऐसा है, जो पूरे शेखावाटी को गौरांवित कराता है। इन्हीं में से एक है हर्षनाथ, जो समुद्र तल से 3100 फीट की ऊंचाई पर हर्ष पर्वत के ऊपर विराजमान है। आइए, आपको भी लेकर चलते हैं हर्ष की यात्रा पर, जो कि ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक और पुरातत्व की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ बहुत ही प्रसिद्ध, सुरम्य और रमणीकता से भरा प्राकृतिक स्थल है......
शेखावाटी के हृदय स्थल के रूप में पहचाने जाने वाले शहर सीकर से दक्षिण दिशा में करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हर्ष पर्वत दूर से ही लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। राजधानी जयपुर से सीकर आने वाला हरेक शख्स दूर से ही इसकी खुबसूरती को देख इसकी ओर खिंचा चला आता है और जो भी यहां पहुंचता है, वह खुद को पूरी तरह से प्रकृति के बीच पाकर रोमांचित हो उठता है। हर्ष पर्वत की ऊंचाई लगभग 3100 फीट है, जिसकी चौटी पर संवत् 1018 में चौहान राजा सिंह राज ने हर्ष नगरी और हर्षनाथ मंदिर की स्थापना करवाई थी और मंदिर पूरा करने का कार्य संवत् 1030 में उनके उत्तराधिकारी राजा विग्रहराज द्वारा किया गया।
ऐसा माना जाता है कि एक पौराणिक घटना के कारण इस पर्वत का नाम हर्ष पड़ा। बताया जाता है कि एक समय दुर्दान्त राक्षसों ने इन्द्र और अन्य देवताओं को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया था, जिसके बाद भगवान शिव ने इसी पर्वत पर इन राक्षसों का संहार किया था। इससे देवताओं में अपार हर्ष हुआ और उन्होंने शंकर की आराधना व स्तुति की। इसके बाद से इस पर्वत को हर्ष पर्वत एवं भगवान शंकर को हर्षनाथ कहा जाने लगा। जबकि एक पौराणिक दन्त कथा के अनुसार हर्ष को जीणमाता का भाई भी माना जाता है।
ऐसा बताया जाता है कि किसी समय पर यहां कुल 84 मंदिर थे, जिनमें से अब यहां कुछ मंदिर ही देखने को मिलते हैं। यहां स्थित सभी मंदिर आज लगभग खंडहर की स्तिथि में हैं, जो किसी समय में काफी गौरवपूर्ण रहे होंगे। ऐसा कहा जाता है कि 1679 ईस्वी में मुगल बादशाह औरंगजेब की ओर से यहां हमला कर मंदिरों को नष्ट व ध्वस्त किया गया था। हालांकि औरंगजेब की सेना के लिए यहां पहुंचना आसान नहीं था, जिसके चलते उसकी सेना ने यहां लम्बे समय तक पड़ाव डाला था। बाद में जब उसे यहां तक पहुंचने के लिए एक राज के बारे में पता चला तो उसने यहां की पवित्रता को खत्म कर यहां पहुंचकर मंदिरों को नष्ट व ध्वस्त करा दिया।
इतिहासकारों के मुताबिक किसी समय में इस प्राचीन शिव मंदिर पर एक विशाल दीपक जलता था, जिसे जंजीरों व चरखी के जरिये ऊपर चढ़ाया जाता था। इस दीपक का प्रकाश इतना हुआ करता था, जो कि सैंकड़ों किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकता था। इसी प्रकाश को औरंगजेब ने देखा था, जिसके बाद संवत 1739 में खंडेला अभियान के दौरान उसने इस पर आक्रमण कर खंडित कर दिया था। औरंगजेब द्वारा किए गए आक्रमण के बाद यहां के कई मंदिर नष्ट व ध्वस्त हो गए, जिनके अवशेष आज यहां खंडहर की शक्ल में और खुर्द-बुर्द अवस्था में देखे जा सकते हैं।
हर्ष पर्वत पर मुख्य मंदिर भगवान शिव के दुर्लभ पंचमुखी शिवलिंग प्रतिमा वाला माना जाता है, जो अपने आप में काफी अनूठा और गौरवमयी है। इस शिव मंदिर की मूर्तियां आश्चर्यजनक रूप से सुन्दर हैं, जिनमें देवताओं व असुरों की प्रतिमाएं कला का उत्कृष्ट नमूना हैं। इनकी रचना शैली की सरलता, गढ़न की कुकुमारता व सुडौलता तथा अंग विन्यास और मुखाकृति का सौष्ठव दर्शनीय है। इन पत्थरों पर की गई कारीगरी यह बतलाती है कि उस समय के सिलावट कारीगर व शिल्पी अपनी कला को किस प्रकार सजीव बनाने में निपुण थे। मंदिर की दीवार व छतों पर की गई चित्रकारी दर्शनीय है। मंदिर परिसर में बीचोंबीच शिव के वाहन नंदी की विशालकाय संगमरमरी प्रतिमा है, जो यहां आने वाले पर्यटकों और दर्शनार्थियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है।
इस मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं, सुंदरियों, अप्सराओं समेत अनेकों सुंदर मूतियां और कलाकृतियां मौजूद है। जबकि कुछ कलाकृतियों को मंदिर की दिवारों में चुनवा दिया गया है। मध्यकालीन स्थापत्य एवं मूर्तिकला की ये उत्कृष्ट कलाकृतियां हैं, जिन्हें देखकर आज भी हर कोई खुद को इतिहास के समंदर में गोते लगाते हुए महसूस कर सकता है। धार्मिक मान्यताओं के चलते दूरदराज से आने वाले श्रद्धालु अपनी कार्य सिद्धी के लिए यहां डोरे व लच्छियां बांधकर मनोकामनाएं मांगते हैं। इसके अलावा आसपास के लोगों में ऐसी भी मान्यताएं है कि यहां पत्थरों से घर बनाने से हर्षनाथ उनके घर की मनोकामना भी जरूर पूरी करते हैं।
शेखावाटी के मध्य से गुजरने वाली अरावली पर्वत माला में हर्ष पर्वत पर 3100 फीट की ऊंचाई पर बना यह मन्दिर आज विखंडित अवस्था में नजर आता है, जो किसी समय में अपनी मौलिक अवस्था में एक गौरवशाली निपुणता का गवाह रहा है। यही गौरवशाली इतिहास वर्तमान में भले ही खंडहर की शक्ल में नजर आता है, लेकिन बावजूद इसके यह मंदिर आज भी अपनी स्थापत्य कला एवं देवी-देवताओं की प्रतिमाओं सहित नृतक-नृतकियों, संगीतज्ञों, योद्धाओं और विभिन्न प्रारूप वाली कलाकृतियों के उत्कृष्ट शिल्प कौशल के लिए प्रसिद्ध है और यहां आने वाले हरेक पयर्टक को अपने गौरवशाली इतिहास का गाथा सुनाता है।
शेखावाटी का हृदय स्थल कहे जाने वाले सीकर के समीप स्थित हर्ष पर्वत, जो अपने आप में इतिहास की कई विरासतें समेटे हुए है और विखंडित होने के बावजूद आज भी शेखावाटी की शान बना हुआ है। यही हर्ष पर्वत जिसने आक्रांताओं का आक्रमण झेलने के बावजूद अपने अतीत और अपने वजूद को आज भी पूरी तरह से सहेजकर रखा है। ऐसे में जरूरत इस बात की भी है कि हर्ष पर्वत जैसी कितनी ही ऐतिहासिक विरासतें और धरोहरें, जो आज अनदेखी के चलते धूल खा रही है, उन्हें सहेजकर रखा जाए, ताकि आने वाली कई युवा पीढ़ियों को ये विरासतें अपने गौरवशाली इतिहास और समृद्ध संस्कृति की झलक दिखा सके।
No comments