निदान और इलाज : क्या आपकी पीठ पूरी तरह से ठीक है?
जयपुर। अध्ययनों से पता चला है कि 20-30 आयु वर्ग का हर 5वां भारतीय पीठ यानि रीढ़ की बीमारियों से परेशान है। युवाओं में रीढ़ की समस्याओं में 60 फीसदी की वृद्धि हुई है। ये आंकड़े आज के युवाओं की बदलती जीवन शैली के बुरे प्रभावों को बताते हैं। तो इसका कारण क्या है? डाॅ जुल्फी, डायरेक्टर, फिज़ियोएक्टिव इण्डिया और सीनियर कन्सलटेन्ट फिज़ियोथेरेपिस्ट के अनुसार ‘‘गतिहीन जीवनशैली, सैलफोन, लैपटाॅप या इलेक्ट्रोनिक डिवाइसेज़ का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल इसके कारण हैं। लोग 6 घण्टे से ज़्यादा अपने आॅफिस में एक ही सीट पर बैठे रहते हैं, इसके अलावा व्यायाम भी नहीं कर पाते।’’
फिज़ियोथेरेपिस्ट के पास लोग पीठ, गर्दन, टांग, हाथों में दर्द की शिकायत लेेकर आते हैं। समय के साथ ये समस्याएं क्रोनिक होती चली जाती हैं। जहां एक ओर इसके लिए सही इलाज ज़रूरी है, वहीं दूसरी ओर इलाज को कारगर बनाने के लिए समय पर सही निदान होना भी ज़रूरी है। क्या चोट के कारण रीढ़ी की बीमारियां होती हैं? या जीवनशैली के कारण ये क्रोनिक बन जाती है? या तंत्रिकाओं की समस्याएं इसका कारण हो सकती है?
निदान और इलाज :
यहां डाॅक्टर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। डाॅक्टर मरीज़ के इतिहास/जीवनशैली/नौकरी, दर्द के समय, हाथों-पैरों एवं अन्य अंगों पर प्रभाव आदि के अनुसार निदान करता है। इसके बाद उसकी शारीरिक जांच की जाती है। लगभग 90 फीसदी मामलों में निदान इसी तरह से किया जाता है। कुछ गंभीर मामलों में डाॅक्टर मरीज़ को एक्स-रे या सीटी स्कैन आदि कराने के लिए कह सकता है। इसके अलावा अगर साॅफ्ट टिश्यु को नुकसान पहुंचने का खतरा हो तो एमआरआईकी जाती है। इसके बाद डाॅक्टर इलाज का तरीका तय करता है जिसमें मैनुअल मोबिलाइज़ेशन, ड्राई नीडलिंग, अल्ट्रासाउण्ड उपचार, स्पाइनल डीकम्प्रैशन थेरेपी, शाॅकवेव थेरेपी, लेज़र थेरेपी शामिल हो सकती है। जिसके बाद मरीज़ को एक्सरसाइज़ करने की सलाह दी जाती है।
क्रोनिक मामलों में मरीज़ को ठीक होने में औसतन 4-6 सप्ताह लगते हैं। यह अवधि मरीज़, उसकी बीमारी, उसकी उम्र और रोज़मर्रा की गतिविधियों पर निर्भर हो सकती है। साथ ही फिज़ियोथेरेपिस्ट के लिए ज़रूरी है कि मरीज़ की अच्छी तरह जांच करें देखे कि इलाज का असर किस तरह हो रहा है और ज़रूरत पड़ने पर इलाज को बदला जाए। इलाज शुरू होने के बाद मरीज़ की प्रगति पर निगरानी रखी जाती है। साथ ही ज़रूरी हैै कि मरीज़ नियमित रूप से अपने फिज़ियोथेरेपिस्ट की सलाह लेता रहे। ऐसी एक्सरसाइज़ न करे जिससे शरीर के ठीक हो रहे हिस्से पर दबाव पड़े। उपरोक्त बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए माना जाता है कि रीढ़/पीठ ठीक रह सकती है, अगर आप अपने शरीर की अच्छी तरह से देखभाल करें और स्वस्थ जीवनशैली जीएं।
फिज़ियोथेरेपिस्ट के पास लोग पीठ, गर्दन, टांग, हाथों में दर्द की शिकायत लेेकर आते हैं। समय के साथ ये समस्याएं क्रोनिक होती चली जाती हैं। जहां एक ओर इसके लिए सही इलाज ज़रूरी है, वहीं दूसरी ओर इलाज को कारगर बनाने के लिए समय पर सही निदान होना भी ज़रूरी है। क्या चोट के कारण रीढ़ी की बीमारियां होती हैं? या जीवनशैली के कारण ये क्रोनिक बन जाती है? या तंत्रिकाओं की समस्याएं इसका कारण हो सकती है?
निदान और इलाज :
यहां डाॅक्टर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। डाॅक्टर मरीज़ के इतिहास/जीवनशैली/नौकरी, दर्द के समय, हाथों-पैरों एवं अन्य अंगों पर प्रभाव आदि के अनुसार निदान करता है। इसके बाद उसकी शारीरिक जांच की जाती है। लगभग 90 फीसदी मामलों में निदान इसी तरह से किया जाता है। कुछ गंभीर मामलों में डाॅक्टर मरीज़ को एक्स-रे या सीटी स्कैन आदि कराने के लिए कह सकता है। इसके अलावा अगर साॅफ्ट टिश्यु को नुकसान पहुंचने का खतरा हो तो एमआरआईकी जाती है। इसके बाद डाॅक्टर इलाज का तरीका तय करता है जिसमें मैनुअल मोबिलाइज़ेशन, ड्राई नीडलिंग, अल्ट्रासाउण्ड उपचार, स्पाइनल डीकम्प्रैशन थेरेपी, शाॅकवेव थेरेपी, लेज़र थेरेपी शामिल हो सकती है। जिसके बाद मरीज़ को एक्सरसाइज़ करने की सलाह दी जाती है।
क्रोनिक मामलों में मरीज़ को ठीक होने में औसतन 4-6 सप्ताह लगते हैं। यह अवधि मरीज़, उसकी बीमारी, उसकी उम्र और रोज़मर्रा की गतिविधियों पर निर्भर हो सकती है। साथ ही फिज़ियोथेरेपिस्ट के लिए ज़रूरी है कि मरीज़ की अच्छी तरह जांच करें देखे कि इलाज का असर किस तरह हो रहा है और ज़रूरत पड़ने पर इलाज को बदला जाए। इलाज शुरू होने के बाद मरीज़ की प्रगति पर निगरानी रखी जाती है। साथ ही ज़रूरी हैै कि मरीज़ नियमित रूप से अपने फिज़ियोथेरेपिस्ट की सलाह लेता रहे। ऐसी एक्सरसाइज़ न करे जिससे शरीर के ठीक हो रहे हिस्से पर दबाव पड़े। उपरोक्त बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए माना जाता है कि रीढ़/पीठ ठीक रह सकती है, अगर आप अपने शरीर की अच्छी तरह से देखभाल करें और स्वस्थ जीवनशैली जीएं।
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