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लेबर कोर्ट में लड़ने वाले मीडियाकर्मियों को ही मिलेगा मजीठिया वेज बोर्ड : सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली। मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अखबार समूहों ने आदेश के बावजूद डिफॉल्ट किया, लेकिन ये जानबूझकर नहीं किया गया। इसलिए उनके खिलाफ अवमानना का मामला नहीं बनता। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि वित्तीय घाटा वेज बोर्ड लागू न करने की कोई वजह नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि किसी भी मीडिया संस्थान में काम करने वाले कांट्रैक्चुअल कर्मचारियों को भी मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ देना होगा।

गौरतलब है कि कोर्ट ने यह फैसला मीडिया संस्थानों में काम करने वाले पत्रकारों और गैर पत्रकारों को लेकर जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशें लागू नहीं करने और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने पर दिया है। कुछ खबरों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने सभी प्रिंट मीडिया समूहों को मजीठिया वेज बोर्ड की सभी सिफारिशें लागू करने का निर्देश दिया है। जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ये समूह वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू करते हुए नियमित और संविदाकर्मियों के बीच कोई अंतर नहीं करेंगे। अदालत ने इस पर तीन मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि अखबारों को अपने कर्मचारियों को 11 नवंबर 2011 से मजीठिया वेज बोर्ड द्वारा तय वेतन और भत्तों का भुगतान करना होगा। इसके अलावा मार्च 2014 तक के बकाया वेतन-भत्तों का एक साल के भीतर चार किश्तों में भुगतान करना होगा। मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लेकर अखबारी समूहों की दलील थी कि ये सिफारिशें लागू करना उनकी आर्थिक क्षमता से बाहर है। उनका यह भी कहना था कि अगर इन्हें लागू करने में जोर-जबरदस्ती की गई तो अखबार आर्थिक समस्याओं में घिर सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि प्रिंट मीडिया से जुड़े पत्रकारों और गैर-पत्रकारों के वेतन भत्तों की समीक्षा करने के लिए कांग्रेसनीत पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने 2007 में मजीठिया वेतन बोर्ड बनाया था। इसने चार साल बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसे केंद्रीय कैबिनेट ने स्वीकार कर लिया था। इसे 11 नवंबर 2011 को अधिसूचित कर दिया गया था, लेकिन, अखबारी समूहों ने इसे मानने से इनकार करते हुए इसे अदालत में चुनौती दी थी। इसके बाद फरवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने वेज बोर्ड की सिफारिशों पर मुहर लगाते हुए इसे लागू करने का निर्देश दिया था।


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