अयोध्या मामला : सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 5 दिसम्बर तक टली, दस्तावेजों का अनुवाद कराने के दिए निर्देश
नई दिल्ली। अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर उपजे विवाद के मसले पर आज देश के सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई की गई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से सम्बंधित सभी दस्तावेजों को अंग्रेजी में अनुवाद कराने के निर्देश दिए हैं। साथ ही इस मामले में होने वाली सुनवाई को 5 दिसम्बर तक के लिए टाल दिया गया है। इसके बाद इस मामले में अंतिम सुनावई की जाएगी।
गौरतलब है कि पिछले 6 सालों से लम्बित चले आ रहे इस मामले में कोर्ट में आज से अयोध्या भूमि विवाद मामले में इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसलों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई होना तय था। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशोें की पीठ को करनी है।
अयोध्या मामले में आज हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस मामले से जुड़े सभी दस्तावेजों और गवाहियों के अनुवाद के लिए 12 हफ्तों का वक्त दिया है। कोर्ट ने सभी पक्षों से कहा कि वे जिन दस्तावेज को आधार बना रहे हैं, उनका 12 सप्ताह के भीतर अंग्रेजी में अनुवाद करायें। गौरतलब है कि कोर्ट ने जिन दस्तावेजों को ट्रांसलेशन कराए जाने के निर्देश दिए हैं, वे दस्तावेज आठ अलग अलग भाषाओं में हैं।
अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर उपजे विवाद पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा है कि हाईकोर्ट में मालिकाना हक के वाद का निर्णय करने के लिए दर्ज साक्ष्यों का अनुवाद 10 सप्ताह के भीतर पूरा कराएं। न्यायालय ने कहा कि यह कार्यवाही पूरी करने के लिए निर्धारित समय सीमा अंतिम है और इसके बाद सुनवाई को स्थगित नहीं किया जाएगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट पांच दिसंबर से अंतिम सुनवाई शुरू करेगा।
अयोध्या विवाद पर सुनवाई के दौरान सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह कोई दीवानी विवाद नहीं, बल्कि मौलिक अधिकारों का मामला है। इसके साथ ही स्वामी ने इसे दीवानी से बदलकर सार्वजनिक हित के मामले की तरह देखा जाए। स्वामी की इस दलील पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विरोध जताते हुए कहा कि यह सवाल तो सुप्रीम कोर्ट पहले ही हल कर चुका है। वक्फ बोर्ड के वकील सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 1994 में ही यह फैसला सुनाया था कि इस जमीन के मालिकाना हक से जुड़े दीवानी मामले की अलग से सुनवाई की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि इस मामले में शिया वक्फ बोर्ड एक अहम पक्षकार है, जिसने तीन दिन पहले ही हलफनामा दायर कर अपनी दावेदारी जताई थी। इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ पीठ द्वारा 2010 में दिए गए फैसले के खिलाफ शिया वक्फ बोर्ड ने अपील दायर की है। उच्च न्यायालय ने अयोध्या राम जन्मभूमि व बाबरी मस्जिद विवाद मामले में विवादित 2.77 एकड़ जमीन तीन बराबर हिस्सों में बांटकर उसे सुन्नी वक्फ बोर्ड, निरमोही अखाड़ा और रामलला को सौंपने का निर्देश दिया था।
गौरतलब है कि पिछले 6 सालों से लम्बित चले आ रहे इस मामले में कोर्ट में आज से अयोध्या भूमि विवाद मामले में इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसलों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई होना तय था। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशोें की पीठ को करनी है।
अयोध्या मामले में आज हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस मामले से जुड़े सभी दस्तावेजों और गवाहियों के अनुवाद के लिए 12 हफ्तों का वक्त दिया है। कोर्ट ने सभी पक्षों से कहा कि वे जिन दस्तावेज को आधार बना रहे हैं, उनका 12 सप्ताह के भीतर अंग्रेजी में अनुवाद करायें। गौरतलब है कि कोर्ट ने जिन दस्तावेजों को ट्रांसलेशन कराए जाने के निर्देश दिए हैं, वे दस्तावेज आठ अलग अलग भाषाओं में हैं।
अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर उपजे विवाद पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा है कि हाईकोर्ट में मालिकाना हक के वाद का निर्णय करने के लिए दर्ज साक्ष्यों का अनुवाद 10 सप्ताह के भीतर पूरा कराएं। न्यायालय ने कहा कि यह कार्यवाही पूरी करने के लिए निर्धारित समय सीमा अंतिम है और इसके बाद सुनवाई को स्थगित नहीं किया जाएगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट पांच दिसंबर से अंतिम सुनवाई शुरू करेगा।
अयोध्या विवाद पर सुनवाई के दौरान सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह कोई दीवानी विवाद नहीं, बल्कि मौलिक अधिकारों का मामला है। इसके साथ ही स्वामी ने इसे दीवानी से बदलकर सार्वजनिक हित के मामले की तरह देखा जाए। स्वामी की इस दलील पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विरोध जताते हुए कहा कि यह सवाल तो सुप्रीम कोर्ट पहले ही हल कर चुका है। वक्फ बोर्ड के वकील सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 1994 में ही यह फैसला सुनाया था कि इस जमीन के मालिकाना हक से जुड़े दीवानी मामले की अलग से सुनवाई की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि इस मामले में शिया वक्फ बोर्ड एक अहम पक्षकार है, जिसने तीन दिन पहले ही हलफनामा दायर कर अपनी दावेदारी जताई थी। इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ पीठ द्वारा 2010 में दिए गए फैसले के खिलाफ शिया वक्फ बोर्ड ने अपील दायर की है। उच्च न्यायालय ने अयोध्या राम जन्मभूमि व बाबरी मस्जिद विवाद मामले में विवादित 2.77 एकड़ जमीन तीन बराबर हिस्सों में बांटकर उसे सुन्नी वक्फ बोर्ड, निरमोही अखाड़ा और रामलला को सौंपने का निर्देश दिया था।
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