स्वामी बसंतराम की 37वीं पुण्यतिथि महोत्सव और श्री प्रेम प्रकाश आश्रम का उद्घाटन समारोह संपन्न
अजमेर। स्वामी बसंतराम महाराज के 37वीं पुण्यतिथि महोत्सव एवं नवनिर्मित श्री प्रेम प्रकाश आश्रम वैशाली नगर में चल रहे भव्य उद्घाटन समारोह के अन्तिम दिन के कार्यक्रम विभिन्न संतों महात्माओं के सानिध्य में अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुए।
संत ओम प्रकाश ने बताया कि सर्वप्रथम प्रातः 7:30 बजे उपस्थित विद्वान पण्डितों ने विधि-विधानुसार भस्मारती करवाई। सत्गुरू स्वामी टेऊँराम जी महाराज, स्वामी बसंतराम जी महाराज, राधा-कृष्ण एवं शिव परिवार के श्रीविग्रहों (मूर्तियों) की 108 दीपों के साथ महाआरती हुई। कार्यक्रम का अगला आकर्षण 1121 व्यंजनों का महाभोग रहा। इस महाभोग में देशी-विदेशी श्रद्धालुओं द्वारा अत्यंत श्रद्धा के साथ 1121 व्यंजन लाए गए। 12 बजे श्रीमद् भगवद् गीता एवं श्री प्रेम प्रकाश ग्रन्थ के पाठों का भोग हुआ। इसके साथ विभिन्न संतों महात्माओं के सत्संग प्रवचन हुए। सत्संग सभा में कोटा के संत मनोहर लाल, दिल्ली के संत जयदेव जी, ग्वालियर के संत हरिओम लाल, संत अनन्त प्रकाश, संत मोनूराम, संत शम्भूलाल, संत जीतूराम, संत श्यामलाल, संत नरेश, संत हनुमान, संत भोलाराम, संत लक्की, संत ढालूराम, संत कमल, संत प्रताप, संत हिमांशु, संत हेमन्त, संत राजूराम आदि उपस्थित थे।
सायंकालीन सत्र में भजनों पर आधारित कार्यक्रम रखा गया। जिसमें उपस्थित कई भजन गायकों ने अपने भजन प्रस्तुत किये। आश्रम के महंत स्वामी ब्रह्मानन्द शास्त्री ने अपने प्रवचन में बताया कि हम परमात्मा की संतान हैं, जिस प्रकार शेर की संतान शेर ही होती है उसी प्रकार हम भी परमात्मा स्वरूप ही हैं। जिस प्रकार बीज का पृथ्वी में समर्पण करने से वह पेड़ रूप में फल आदि रूप में परिवर्तित होता है, उसी प्रकार गुरू में पूर्ण समर्पण से ही भक्त को आत्मबोध से साक्षात्कार हो पायेगा। बिना समर्पण के वो सामान्य आदमी ही रह जायेगा।
प्रेम प्रकाश मंडल के मंडलाध्यक्ष स्वामी भगत प्रकाश महाराज ने अपने प्रवचन में बताया कि स्वामी बसंतराम जी की पूर्व जन्मों के संस्कारों के फलस्वरूप बचपन से ही उनकी रूचि अध्यात्मिक मार्ग की ओर रही। सहनशीलता उनके जीवन का विशेष गुण था। विभिन्न विपदाओं में भी वो अपने मन को विचलित नहीं होने देते थे। शांति और सहनशीलता उन्होंने अपने जीवन में धारण किया। उनके जीवन से हमें यह प्रेरणा मिलती है जिसके जीवन में सहनशीलता है वो ही सफलता प्राप्त करता है। चाहे व्यवहारिक हो या आध्यात्मिक जीवन हो उसमें हमें धीरज व सहनशीलता को अपनाना चाहिए। मन को शांत बनाना सीखें। परिस्थियां हमेशा हमारे अनुकूल नहीं रहती। शांति अगर चाहिए तो हर कठिन परिस्थिति को हमें प्रभु की लीला समझनी चाहिए।
सत्गुरू स्वामी भगत प्रकाश महाराज ने उसके बाद पल्लव (अरदास) पाकर उत्सव की समाप्ति की घोषणा के बाद प्रसाद वितरण हुआ। संत ओम प्रकाश ने इस महोत्सव के कार्यक्रम में सभी सहयोग प्रदान करने वालों का आभार व्यक्त किया एवं नवनिर्मित श्री प्रेम प्रकाश आश्रम, वैशाली नगर के उद्घाटन महोत्सव की सभी श्रद्धालुओं को शुभकामनाएँ प्रदान की।
संत ओम प्रकाश ने बताया कि सर्वप्रथम प्रातः 7:30 बजे उपस्थित विद्वान पण्डितों ने विधि-विधानुसार भस्मारती करवाई। सत्गुरू स्वामी टेऊँराम जी महाराज, स्वामी बसंतराम जी महाराज, राधा-कृष्ण एवं शिव परिवार के श्रीविग्रहों (मूर्तियों) की 108 दीपों के साथ महाआरती हुई। कार्यक्रम का अगला आकर्षण 1121 व्यंजनों का महाभोग रहा। इस महाभोग में देशी-विदेशी श्रद्धालुओं द्वारा अत्यंत श्रद्धा के साथ 1121 व्यंजन लाए गए। 12 बजे श्रीमद् भगवद् गीता एवं श्री प्रेम प्रकाश ग्रन्थ के पाठों का भोग हुआ। इसके साथ विभिन्न संतों महात्माओं के सत्संग प्रवचन हुए। सत्संग सभा में कोटा के संत मनोहर लाल, दिल्ली के संत जयदेव जी, ग्वालियर के संत हरिओम लाल, संत अनन्त प्रकाश, संत मोनूराम, संत शम्भूलाल, संत जीतूराम, संत श्यामलाल, संत नरेश, संत हनुमान, संत भोलाराम, संत लक्की, संत ढालूराम, संत कमल, संत प्रताप, संत हिमांशु, संत हेमन्त, संत राजूराम आदि उपस्थित थे।
सायंकालीन सत्र में भजनों पर आधारित कार्यक्रम रखा गया। जिसमें उपस्थित कई भजन गायकों ने अपने भजन प्रस्तुत किये। आश्रम के महंत स्वामी ब्रह्मानन्द शास्त्री ने अपने प्रवचन में बताया कि हम परमात्मा की संतान हैं, जिस प्रकार शेर की संतान शेर ही होती है उसी प्रकार हम भी परमात्मा स्वरूप ही हैं। जिस प्रकार बीज का पृथ्वी में समर्पण करने से वह पेड़ रूप में फल आदि रूप में परिवर्तित होता है, उसी प्रकार गुरू में पूर्ण समर्पण से ही भक्त को आत्मबोध से साक्षात्कार हो पायेगा। बिना समर्पण के वो सामान्य आदमी ही रह जायेगा।
प्रेम प्रकाश मंडल के मंडलाध्यक्ष स्वामी भगत प्रकाश महाराज ने अपने प्रवचन में बताया कि स्वामी बसंतराम जी की पूर्व जन्मों के संस्कारों के फलस्वरूप बचपन से ही उनकी रूचि अध्यात्मिक मार्ग की ओर रही। सहनशीलता उनके जीवन का विशेष गुण था। विभिन्न विपदाओं में भी वो अपने मन को विचलित नहीं होने देते थे। शांति और सहनशीलता उन्होंने अपने जीवन में धारण किया। उनके जीवन से हमें यह प्रेरणा मिलती है जिसके जीवन में सहनशीलता है वो ही सफलता प्राप्त करता है। चाहे व्यवहारिक हो या आध्यात्मिक जीवन हो उसमें हमें धीरज व सहनशीलता को अपनाना चाहिए। मन को शांत बनाना सीखें। परिस्थियां हमेशा हमारे अनुकूल नहीं रहती। शांति अगर चाहिए तो हर कठिन परिस्थिति को हमें प्रभु की लीला समझनी चाहिए।
सत्गुरू स्वामी भगत प्रकाश महाराज ने उसके बाद पल्लव (अरदास) पाकर उत्सव की समाप्ति की घोषणा के बाद प्रसाद वितरण हुआ। संत ओम प्रकाश ने इस महोत्सव के कार्यक्रम में सभी सहयोग प्रदान करने वालों का आभार व्यक्त किया एवं नवनिर्मित श्री प्रेम प्रकाश आश्रम, वैशाली नगर के उद्घाटन महोत्सव की सभी श्रद्धालुओं को शुभकामनाएँ प्रदान की।
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