श्री प्रेम प्रकाश आश्रम में देव प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा, ध्वजावंदन, संतसमागम हुए धार्मिक कार्यक्रम
अजमेर। नवनिर्मित श्री प्रेम प्रकाश आश्रम वैशाली नगर में चल रहे भव्य उद्घाटन समारोह एवं सद्गुरू स्वामी बसंतराम जी महाराज के 37वीं पुण्यतिथि महोत्सव के अंतर्गत पांचवें दिन के कार्यक्रम प्रेम प्रकाश मंडल के महामंडलेश्वर स्वामी भगत प्रकाश महाराज, 108 वेदान्त केसरी स्वामी बसंतराम महाराज के शिष्य व आश्रम के महंत स्वामी ब्रह्मानन्द शास्त्री के सानिध्य में अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुए। यह जानकारी देते हुए आश्रम के संत ओम प्रकाश शास्त्री ने बताया कि कार्यक्रम के 5वें दिन प्रातः 8 से विद्वान पण्डित स्व. श्री ब्रज मोहन व्यास जी महाराज के सुपौत्र कृष्ण कुमार व्यास के नेतृत्व में पण्डितों द्वारा मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठा के हवन एवं अन्य धार्मिक क्रियाऐं वैदिक रीतियों से सम्पन्न करवायीं गयी। 11 बजे नवनिर्मित आश्रम की देव प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा, प्रतिष्ठा न्यास, मूर्ति श्रृंगार करके स्थापित देव मूर्ति पूजन कर आरती के साथ यज्ञ पूर्णाहूति की गई।
इन्दौर से आए गुरमुखदास जी एवं परमानन्द (पिन्टू) ने अपने भजनों से उपस्थित श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया। साथ ही शहनाई वादन के साथ ”प्रेम प्रकाश ध्वज“ फहराया गया। इस अवसर पर वासुदेव देवनानी, अनिता भदेल, उपमहापौर संपत सांखला, अलवर के विधायक ज्ञानदेव आहूजा, जयकिशन पारवानी समेत कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। तत्पश्चात् सत्संग, संत समागम आश्रम के सत्संग हॉल में हुआ। संत समागम में प्रेम प्रकाश मंडलाध्यक्ष स्वामी भगत प्रकाश जी महाराज के साथ स्वामी ब्रह्मानन्द शास्त्री, कोटा के संत मनोहर लाल, ग्वालियर के संत हरिओम लाल, दिल्ली के संत स्वामी जयदेव जी महाराज, अहमदाबाद के संत मोनूराम जी, मनोहरानन्द दरबार के स्वामी स्वरूप दास महाराज, ग्वालानन्द दरबार के संत, माता ज्ञानज्योति, अहमदाबाद की पुष्पा बहन एवं अन्य कई स्थानों से आए कई संत महात्मा शामिल हुए। संत सभा का संचालन संत ओमप्रकाश कुशलतापूर्वक कर रहे थे। अजमेर व बाहर से आए हुए संत-महात्माओं ने आश्रम के संतों, सेवादारियों एवं उपस्थित श्रद्धालुओं को नये आश्रम के उद्घाटन की कोटि-कोटि बधाई दी। साथ ही संतों महात्माओं की उपस्थिति में आम भण्डारा हुआ।
सायंकालीन सत्संग सभा में सर्व प्रथम कृष्ण लीला का मंचन किया गया। बाद में विभिन्न गायकों कलाकारों ने भजनों की प्रस्तुती दी जिनमें उल्हास नगर से आईं सुमन खेमलानी प्रमुख थीं, जिन्होंने अपने भजनों से उपस्थित श्रद्धालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। स्वामी ब्रह्मानन्द शास्त्री ने अपने प्रवचन में बताया कि सत्संग का वास्तविक अर्थ है जीवन में सदाचार आना। जीवन में सद्व्यवहार करना। अच्छा आचार-विचार करना चाहिये। आज स्वामी बसंतराम महाराज का पुण्यतिथि दिवस है। आज के दिन पर हम सबका यहाँ आना तभी सफल माना जाएगा जब हम उनके सद्गुणों को अपने जीवन में अपनायेंगे एवं उनके समान बनने का प्रयास करेंगे। गुरू चरणों में यही प्रार्थना करें कि हमारा नाम सिमरन में मन लगे। उसके बाद प्रसाद वितरण हुआ।
इन्दौर से आए गुरमुखदास जी एवं परमानन्द (पिन्टू) ने अपने भजनों से उपस्थित श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया। साथ ही शहनाई वादन के साथ ”प्रेम प्रकाश ध्वज“ फहराया गया। इस अवसर पर वासुदेव देवनानी, अनिता भदेल, उपमहापौर संपत सांखला, अलवर के विधायक ज्ञानदेव आहूजा, जयकिशन पारवानी समेत कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। तत्पश्चात् सत्संग, संत समागम आश्रम के सत्संग हॉल में हुआ। संत समागम में प्रेम प्रकाश मंडलाध्यक्ष स्वामी भगत प्रकाश जी महाराज के साथ स्वामी ब्रह्मानन्द शास्त्री, कोटा के संत मनोहर लाल, ग्वालियर के संत हरिओम लाल, दिल्ली के संत स्वामी जयदेव जी महाराज, अहमदाबाद के संत मोनूराम जी, मनोहरानन्द दरबार के स्वामी स्वरूप दास महाराज, ग्वालानन्द दरबार के संत, माता ज्ञानज्योति, अहमदाबाद की पुष्पा बहन एवं अन्य कई स्थानों से आए कई संत महात्मा शामिल हुए। संत सभा का संचालन संत ओमप्रकाश कुशलतापूर्वक कर रहे थे। अजमेर व बाहर से आए हुए संत-महात्माओं ने आश्रम के संतों, सेवादारियों एवं उपस्थित श्रद्धालुओं को नये आश्रम के उद्घाटन की कोटि-कोटि बधाई दी। साथ ही संतों महात्माओं की उपस्थिति में आम भण्डारा हुआ।
सायंकालीन सत्संग सभा में सर्व प्रथम कृष्ण लीला का मंचन किया गया। बाद में विभिन्न गायकों कलाकारों ने भजनों की प्रस्तुती दी जिनमें उल्हास नगर से आईं सुमन खेमलानी प्रमुख थीं, जिन्होंने अपने भजनों से उपस्थित श्रद्धालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। स्वामी ब्रह्मानन्द शास्त्री ने अपने प्रवचन में बताया कि सत्संग का वास्तविक अर्थ है जीवन में सदाचार आना। जीवन में सद्व्यवहार करना। अच्छा आचार-विचार करना चाहिये। आज स्वामी बसंतराम महाराज का पुण्यतिथि दिवस है। आज के दिन पर हम सबका यहाँ आना तभी सफल माना जाएगा जब हम उनके सद्गुणों को अपने जीवन में अपनायेंगे एवं उनके समान बनने का प्रयास करेंगे। गुरू चरणों में यही प्रार्थना करें कि हमारा नाम सिमरन में मन लगे। उसके बाद प्रसाद वितरण हुआ।
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