कांग्रेस में आया 'राहुल राज', चुनौतियों भरी राह में कैसे करेंगे 'काज'
अब तक कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे राहुल गांधी प्रमोशन होने के साथ ही अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं। पार्टी अध्यक्ष पद पर राहुल के निर्विरोध निर्वाचित होने की आज घोषणा की गई है और अब 16 दिसंबर को उनकी अधिकारिक ताजपोशी की जाएगी। 16 दिसंबर को राहुल अपनी मां सोनिया गांधी से पार्टी की कमान अपने हाथ में थाम लेंगे। ऐसे में राहुल के पार्टी अध्यक्ष बनने के साथ ही उनके राजनीतिक कैरियर और सूझबूझ पर भी सभी की निगाहें होंगी, जिनसे वे कांग्रेस की नैया को पार लगाने की कोशिश करेंगे।
देश की दो प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और भाजपा में हमेशा से आमने-सामने की टक्कर रही है और राजनीति के मैदान में दोनों एक दूसरे के धुर प्रतिद्वंदी रहे हैं। भाजपा में जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत कई दिग्गज नेता कांग्रेस पर निशाने साधते नजर आते हैं, वहीं कांग्रेस के निवर्तमान उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी भाजपा और पीएम मोदी पर हमले बोलते दिखाई देते हैं। हालांकि कांग्रेस के पास भी कई वरिष्ठ एवं दिग्गज नेता मौजूद है, लेकिन राहुल के पूर्व में पार्टी उपाध्यक्ष एवं वर्तमान में अध्यक्ष होने के चलते उन्हें ही फेस किया जाता रहा है। ऐसे में पार्टी के अन्य कई वरिष्ठ नेता स्वयं को उपेक्षित मान बैठते हैं।
इन तमाम हालात को देखते हुए राहुल की राह आसान नजर नहीं आती है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी कांग्रेस के 'तारनहार' बनकर पार्टी की नैया को पार लगा पाएंगे। वहीं राहुल गांधी के राजनीतिक फैैसलों को देखकर भी उनकी सूझबूझ एवं राजनीतिक कैरियर की उम्र तय होना पूरी तरह से तय है। राहुल गांधी को भले ही पार्टी के आला नेताओं ने अपना समर्थन दिया हो, लेकिन राजनीति के मैदान में उतरने वाला हर यौद्धा खुद को महारथी साबित करने के लिए भरसक प्रयास करता ही है। ऐसे में पार्टी के सीनियर लीडर्स को साथ में लेकर चलना राहुल के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगा। वहीं अपने फैसलों को लेकर भी सभी दिग्गजों का समर्थन हासिल करना भी राहुल के लिए कम चुनौतीपूर्ण नहीं होगा।
राहुल से पूर्व पार्टी अध्यक्ष की कमान उनकी मां सोनिया गांधी के हाथों में थी, जिसे अब राहुल ने अपने हाथों में थामा है। कांग्रेस के अध्यक्ष बनने वाले राहुल गांधी नेहरू-गांधी परिवार के छठे शख्स हैं। उनसे पहले मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के अब 19 साल बाद राहुल ने ये जिम्मेदारी संभाली है। ऐसे में कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप भी लगता रहा है। जाहिर है वंशवाद के आरोप का सामना करना और विरोधियों को इसका जवाब देना भी राहुल के लिए एक बड़ी चुनौती होगा।
19 साल पहले वर्ष 1998 में सोनिया गांधी ने जब कांग्रेस की कमान संभाली, तब भी पार्टी की सियासी हालत कमजोर थी। उसके बाद हालांकि सोनिया गांधी ने अपनी सूझबूझ एवं राजनीतिक दक्षता का परिचय देते हुए पार्टी को मजबूत बनाने के प्रयास भी किए और अन्य कई दलों के साथ मिलकर यूपीए सरकार बनाने में कामयाबी भी हासिल की। इसके बाद कांग्रेस में कई बार उतार-चढ़ाव के दौर आते रहे। 2004 और 2009 में सरकार बनाने के बावजूद साल 2014 में नरेन्द्र मोदी की लहर के चलते कांग्रेस की करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा, जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई। इसके बाद कई राज्यों में हुए चुनावों में कांग्रेस को मुहं की खानी पड़ी।
इसके बाद अब जब राहुल गांधी ने कांग्रेस की कमान अपने हाथों में थामी है, तब भी कांग्रेस की सियासी हालत कोई खास मजबूत नहीं है। गुजरात में हो रहे चुनाव राहुत के नेतृत्व में ही लड़े जा रहे हैं, जिसके नतीजे भी ये तय करने में महत्वपूर्ण होंगे कि राहुल की राह को कितनी आसान होगी या फिर कितनी मुसीबतों से भरी। गुजरात चुनावों के बाद राजस्थान में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां कांग्रेस में अभी तक मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी साफ नहीं है। ऐसे में राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी रणनीतिक दक्षता का परिचय देते हुए पार्टी की साख बचाना भी राहुल के लिए कम चुनौतीपूर्ण कार्य नहीं है। वहीं इसके बाद साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में पार्टी की साख बचाने के साथ साथ खुद को साबित करना भी राहुल के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगा।
देश की दो प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और भाजपा में हमेशा से आमने-सामने की टक्कर रही है और राजनीति के मैदान में दोनों एक दूसरे के धुर प्रतिद्वंदी रहे हैं। भाजपा में जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत कई दिग्गज नेता कांग्रेस पर निशाने साधते नजर आते हैं, वहीं कांग्रेस के निवर्तमान उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी भाजपा और पीएम मोदी पर हमले बोलते दिखाई देते हैं। हालांकि कांग्रेस के पास भी कई वरिष्ठ एवं दिग्गज नेता मौजूद है, लेकिन राहुल के पूर्व में पार्टी उपाध्यक्ष एवं वर्तमान में अध्यक्ष होने के चलते उन्हें ही फेस किया जाता रहा है। ऐसे में पार्टी के अन्य कई वरिष्ठ नेता स्वयं को उपेक्षित मान बैठते हैं।
इन तमाम हालात को देखते हुए राहुल की राह आसान नजर नहीं आती है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी कांग्रेस के 'तारनहार' बनकर पार्टी की नैया को पार लगा पाएंगे। वहीं राहुल गांधी के राजनीतिक फैैसलों को देखकर भी उनकी सूझबूझ एवं राजनीतिक कैरियर की उम्र तय होना पूरी तरह से तय है। राहुल गांधी को भले ही पार्टी के आला नेताओं ने अपना समर्थन दिया हो, लेकिन राजनीति के मैदान में उतरने वाला हर यौद्धा खुद को महारथी साबित करने के लिए भरसक प्रयास करता ही है। ऐसे में पार्टी के सीनियर लीडर्स को साथ में लेकर चलना राहुल के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगा। वहीं अपने फैसलों को लेकर भी सभी दिग्गजों का समर्थन हासिल करना भी राहुल के लिए कम चुनौतीपूर्ण नहीं होगा।
राहुल से पूर्व पार्टी अध्यक्ष की कमान उनकी मां सोनिया गांधी के हाथों में थी, जिसे अब राहुल ने अपने हाथों में थामा है। कांग्रेस के अध्यक्ष बनने वाले राहुल गांधी नेहरू-गांधी परिवार के छठे शख्स हैं। उनसे पहले मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के अब 19 साल बाद राहुल ने ये जिम्मेदारी संभाली है। ऐसे में कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप भी लगता रहा है। जाहिर है वंशवाद के आरोप का सामना करना और विरोधियों को इसका जवाब देना भी राहुल के लिए एक बड़ी चुनौती होगा।
19 साल पहले वर्ष 1998 में सोनिया गांधी ने जब कांग्रेस की कमान संभाली, तब भी पार्टी की सियासी हालत कमजोर थी। उसके बाद हालांकि सोनिया गांधी ने अपनी सूझबूझ एवं राजनीतिक दक्षता का परिचय देते हुए पार्टी को मजबूत बनाने के प्रयास भी किए और अन्य कई दलों के साथ मिलकर यूपीए सरकार बनाने में कामयाबी भी हासिल की। इसके बाद कांग्रेस में कई बार उतार-चढ़ाव के दौर आते रहे। 2004 और 2009 में सरकार बनाने के बावजूद साल 2014 में नरेन्द्र मोदी की लहर के चलते कांग्रेस की करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा, जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई। इसके बाद कई राज्यों में हुए चुनावों में कांग्रेस को मुहं की खानी पड़ी।
इसके बाद अब जब राहुल गांधी ने कांग्रेस की कमान अपने हाथों में थामी है, तब भी कांग्रेस की सियासी हालत कोई खास मजबूत नहीं है। गुजरात में हो रहे चुनाव राहुत के नेतृत्व में ही लड़े जा रहे हैं, जिसके नतीजे भी ये तय करने में महत्वपूर्ण होंगे कि राहुल की राह को कितनी आसान होगी या फिर कितनी मुसीबतों से भरी। गुजरात चुनावों के बाद राजस्थान में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां कांग्रेस में अभी तक मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी साफ नहीं है। ऐसे में राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी रणनीतिक दक्षता का परिचय देते हुए पार्टी की साख बचाना भी राहुल के लिए कम चुनौतीपूर्ण कार्य नहीं है। वहीं इसके बाद साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में पार्टी की साख बचाने के साथ साथ खुद को साबित करना भी राहुल के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगा।
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