जानिए, आखिर एक गांव का पप्पू कैसे बन गया राजस्थान का खूंखार गैंगस्टर आनंदपाल
जयपुर। पिछले काफी समय से राजस्थान समेत पांच राज्यों की पुलिस के लिए मोस्ट वांटेड क्रिमिनल बने आनंदपाल सिंह को पुलिस ने एनकांउटर में मार गिराया है। चूरू के मालासर में पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में जहां आनंदपाल ने पुलिस पर अपनी एके-47 राइफल से 150 से ज्यादा राउंड फायर किए, वहीं पुलिस की छह गोलियों ने आनंदपाल को ढेर कर दिया। आनंदपाल के खात्मे के साथ ही उसकी दहशत का भी खात्मा हो गया।
आतंक का पर्याय बन चुके आनंदपाल के साथ ही उसकी कहानी भी जुड़ी हुई है, जो किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं है। आनंदपाल का गुनाहों की दुनिया में दाखिल होने की कहानी भी बॉलीवुड की किसी थ्रिलर फिल्म की कहानी की तरह से ही है। बताया जाता है कि कभी एक दौर ऐसा भी था, जब आनंदपाल किसी भी साधारण व्यक्ति की तरह ही था। उसका भी आम लोगों की तरह सादा जीवन था, लेकिन बदलते दौर के साथ आनंदपाल सिंह के जीवन में भी बदलाव आया और वह अपराध के दलदल में धंसता चला गया।
ये है आनंदपाल के गैंगस्टर बनने की दास्तां :
शिक्षा के क्षेत्र में आनंदपाल ने बीएड तक की शिक्षा हासिल की, जिसके बाद उसने शिक्षक बनकर बच्चों के भविष्य को संवारना चाहा, लेकिन बचपन में हुए सामाजिक भेदभाव, उसकी महत्वकांक्षाओं और राजनीतिक दुश्मनी ने उसे राजस्थान का सबसे बड़ा गैंगस्टर बना दिया। राजस्थान में नागौर जिले के डीडवाना रोड पर बसे एक छोटे से गांव सांवरदा में में ठाकुर हुकुम सिंह के घर जन्मे आनंदपाल को बचपन में घर और गांव में सभी पप्पू के नाम से पुकारा करते थे। उसका बचपन गांव की गलियों में ही बीता। पढ़ाई में वह काफी होशियार था। इसी के चलते आगे की पढ़ाई के लिए वह 1988-89 में लाडनूं चला गया। वहां से 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद उसने डीडवाना के बांगड़ कॉलेज में दाखिला लिया। यहां से उसने स्नातक तक की पढ़ाई की। बाद में शिक्षक बनने के लिए उसने बैचलर ऑफ एज्यूकेशन की डिग्री भी प्राप्त की।
पंचायत समिति चुनाव ने बदली धारा :
इसके बाद आनंदपाल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगा, लेकिन इसी दौरान उसका रुझान राजनीति की ओर होने लगा, जिसके चलते उसने साल 2000 में हुए पंचायत समिति के चुनाव लड़े और जीत हासिल की। पंचायत समिति सदस्य के चुनाव में जीतने के बाद वह प्रधान के चुनाव में खड़ा हुआ, लेकिन वह इन चुनावों में महज दो वोटों से हार गया। बाद में पंचायत समिति के स्थायी समितियों के चुनाव में उसका हरजीराम बुरडक के साथ विवाद हो गया और आनंदपाल का राजनीति में एक मुकाम हासिल करने का सपना चकनाचूर हो गया। इसी दौरान आंनदपाल सिंह पर राजकार्य में बाधा डालने का मामला दर्ज हुआ। इसी दौरान आनंदपाल सिंह से खेराज हत्याकांड हुआ। यहीं से हुई आनंदपाल की अपराध की दुनिया में एंट्री और यहीं से वही अपराध के दलदल में धंसता चला गया। बाद में आनंदपाल ने अपने सबसे ख़ास दोस्त जीवन गोदारा से भी रिश्ते तोड़कर अपना रास्ता अलग कर लिया। इसके बाद आनंदपाल शराब की खरीद—फरोख्त में घुस गया और शराब माफिया बन गया। अवैध शराब की लूटपाट से ही आनंदपाल का अपराधिक सफर शुरु हुआ।
जीवन गोदारा हत्याकांड ने बना दिया गैंगस्टर :
आनंदपाल सिंह ने साल 2006 में डीडवाना में दिनदहाड़े जीवन गोदारा की गोलियों से भूनकर हत्या कर डाली और अपने गैंग के सदस्यों के साथ फरार हो गया। जीवन गोदारा हत्याकांड के बाद आंनदपाल सिंह प्रदेश में दहशत का दूसरा नाम बन गया। फरारी के दौरान 6 साल तक आंनदपाल ने पूरे प्रदेश मे कई वारदातों को अंजाम दिया, लेकिन पुलिस उसे किसी भी मामले मे पकड़ नही पाई थी। इस हत्याकांड के बाद आनन्दपाल ने अपना एक बड़ा नेटवर्क बना लिया और यूपी, एमपी और बिहार के बदमाशों की मदद से आधुनिक हथियार जुटा लिए। शेखावाटी के बदमाश बलवीर बानुड़ा के साथ मिलकर नागौर से निकलकर शेखावाटी की ओर रुख किया। शेखावाटी में राजू ठेहट गैंग के खिलाफ आनंदपाल सिंह के गैंग की कई बार मुठभेड़ हुई। आखिरकार आंनदपाल सिंह औऱ सहयोगी दातार सिंह को जयपुर पुलिस और एसओजी की संयुंक्त टीम ने हथियारों के जखीरे के साथ नवंबर 2012 मे फागी से गिरफ्तार कर लिया।
फरारी के बाद बन गया मोस्ट वांटेड गैंगस्टर :
गिरफ्तारी के बाद उसे बीकानेर जेल भेजा गया, लेकिन जेल में राजू ठेहट गैंग की ओर से हुई फायरिंग में बलबीर बानूड़ा मारा गया और आनंदपाल बच गया। सुरक्षा कारणों के चलते आनंदपाल को अजमेर की सिक्योरिटी जेल में भेजा गया। आंनदपाल सिंह कोर्ट में चल रही पेशियों के कारण रोजाना अजमेर जेल से लाया जाने लगा, मगर पुलिस सुरक्षा धीरे धीरे कम होती गई। यह देख आंनदपाल ने फिर से फरार होने की साजिश रची और 3 सितंबर, 2015 को फरार होने में कामयाब हो गया। साल 2015 में आनंदपाल के फरार होने के बाद से उसकी तलाश लगातार जगह—जगह की जाने लगी। इस दौरान राजस्थान पुलिस ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली की पुलिस से भी संपर्क किया है। इन राज्यों में उसकी तलाश की गई। आनदंपाल को पकड़ने के लिए पुलिस—एसओजी ने कई स्पेशल टीमों का गठन किया, जिसमें 30 से भी ज्यादा आईपीएस और आरपीएस स्तर के अफसरों ने काम किया।
और यूं हुआ आतंक का खात्मा :
हाल ही में पुलिस ने आनंदपाल के कुछ रिश्तेदारों को अरेस्ट किया था, जिनसे आनंदपाल के चुरू में होने की पुख्ता खबर मिली थी। इसके बाद पुलिस ने उसे घेरने की रणनीति बनाई और रतनगढ़ के पास मालासर में पुलिस टीम ने आनंदपाल को गिरफ्तार किए जाने का प्रयास किया। इस दौरान आनंदपाल की ओर से पुलिस पर फायरिंग की गई, जिसके चलते काफी देर तक गोलियां चली। आनंदपाल की ओर से की गई फायरिंग के बाद पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए उसका एनकांउटर कर दिया और उसे मार गिराया। इसके साथ ही आनंदपाल और उसके आतंक का खत्मा हो गया।
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आनंद, आतंक और अंत : ये है आनंदपाल सिंह और उसके एनकाउंटर की पूरी कहानी
आतंक का पर्याय बन चुके आनंदपाल के साथ ही उसकी कहानी भी जुड़ी हुई है, जो किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं है। आनंदपाल का गुनाहों की दुनिया में दाखिल होने की कहानी भी बॉलीवुड की किसी थ्रिलर फिल्म की कहानी की तरह से ही है। बताया जाता है कि कभी एक दौर ऐसा भी था, जब आनंदपाल किसी भी साधारण व्यक्ति की तरह ही था। उसका भी आम लोगों की तरह सादा जीवन था, लेकिन बदलते दौर के साथ आनंदपाल सिंह के जीवन में भी बदलाव आया और वह अपराध के दलदल में धंसता चला गया।
ये है आनंदपाल के गैंगस्टर बनने की दास्तां :
शिक्षा के क्षेत्र में आनंदपाल ने बीएड तक की शिक्षा हासिल की, जिसके बाद उसने शिक्षक बनकर बच्चों के भविष्य को संवारना चाहा, लेकिन बचपन में हुए सामाजिक भेदभाव, उसकी महत्वकांक्षाओं और राजनीतिक दुश्मनी ने उसे राजस्थान का सबसे बड़ा गैंगस्टर बना दिया। राजस्थान में नागौर जिले के डीडवाना रोड पर बसे एक छोटे से गांव सांवरदा में में ठाकुर हुकुम सिंह के घर जन्मे आनंदपाल को बचपन में घर और गांव में सभी पप्पू के नाम से पुकारा करते थे। उसका बचपन गांव की गलियों में ही बीता। पढ़ाई में वह काफी होशियार था। इसी के चलते आगे की पढ़ाई के लिए वह 1988-89 में लाडनूं चला गया। वहां से 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद उसने डीडवाना के बांगड़ कॉलेज में दाखिला लिया। यहां से उसने स्नातक तक की पढ़ाई की। बाद में शिक्षक बनने के लिए उसने बैचलर ऑफ एज्यूकेशन की डिग्री भी प्राप्त की।
पंचायत समिति चुनाव ने बदली धारा :
इसके बाद आनंदपाल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगा, लेकिन इसी दौरान उसका रुझान राजनीति की ओर होने लगा, जिसके चलते उसने साल 2000 में हुए पंचायत समिति के चुनाव लड़े और जीत हासिल की। पंचायत समिति सदस्य के चुनाव में जीतने के बाद वह प्रधान के चुनाव में खड़ा हुआ, लेकिन वह इन चुनावों में महज दो वोटों से हार गया। बाद में पंचायत समिति के स्थायी समितियों के चुनाव में उसका हरजीराम बुरडक के साथ विवाद हो गया और आनंदपाल का राजनीति में एक मुकाम हासिल करने का सपना चकनाचूर हो गया। इसी दौरान आंनदपाल सिंह पर राजकार्य में बाधा डालने का मामला दर्ज हुआ। इसी दौरान आनंदपाल सिंह से खेराज हत्याकांड हुआ। यहीं से हुई आनंदपाल की अपराध की दुनिया में एंट्री और यहीं से वही अपराध के दलदल में धंसता चला गया। बाद में आनंदपाल ने अपने सबसे ख़ास दोस्त जीवन गोदारा से भी रिश्ते तोड़कर अपना रास्ता अलग कर लिया। इसके बाद आनंदपाल शराब की खरीद—फरोख्त में घुस गया और शराब माफिया बन गया। अवैध शराब की लूटपाट से ही आनंदपाल का अपराधिक सफर शुरु हुआ।
जीवन गोदारा हत्याकांड ने बना दिया गैंगस्टर :
आनंदपाल सिंह ने साल 2006 में डीडवाना में दिनदहाड़े जीवन गोदारा की गोलियों से भूनकर हत्या कर डाली और अपने गैंग के सदस्यों के साथ फरार हो गया। जीवन गोदारा हत्याकांड के बाद आंनदपाल सिंह प्रदेश में दहशत का दूसरा नाम बन गया। फरारी के दौरान 6 साल तक आंनदपाल ने पूरे प्रदेश मे कई वारदातों को अंजाम दिया, लेकिन पुलिस उसे किसी भी मामले मे पकड़ नही पाई थी। इस हत्याकांड के बाद आनन्दपाल ने अपना एक बड़ा नेटवर्क बना लिया और यूपी, एमपी और बिहार के बदमाशों की मदद से आधुनिक हथियार जुटा लिए। शेखावाटी के बदमाश बलवीर बानुड़ा के साथ मिलकर नागौर से निकलकर शेखावाटी की ओर रुख किया। शेखावाटी में राजू ठेहट गैंग के खिलाफ आनंदपाल सिंह के गैंग की कई बार मुठभेड़ हुई। आखिरकार आंनदपाल सिंह औऱ सहयोगी दातार सिंह को जयपुर पुलिस और एसओजी की संयुंक्त टीम ने हथियारों के जखीरे के साथ नवंबर 2012 मे फागी से गिरफ्तार कर लिया।
फरारी के बाद बन गया मोस्ट वांटेड गैंगस्टर :
गिरफ्तारी के बाद उसे बीकानेर जेल भेजा गया, लेकिन जेल में राजू ठेहट गैंग की ओर से हुई फायरिंग में बलबीर बानूड़ा मारा गया और आनंदपाल बच गया। सुरक्षा कारणों के चलते आनंदपाल को अजमेर की सिक्योरिटी जेल में भेजा गया। आंनदपाल सिंह कोर्ट में चल रही पेशियों के कारण रोजाना अजमेर जेल से लाया जाने लगा, मगर पुलिस सुरक्षा धीरे धीरे कम होती गई। यह देख आंनदपाल ने फिर से फरार होने की साजिश रची और 3 सितंबर, 2015 को फरार होने में कामयाब हो गया। साल 2015 में आनंदपाल के फरार होने के बाद से उसकी तलाश लगातार जगह—जगह की जाने लगी। इस दौरान राजस्थान पुलिस ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली की पुलिस से भी संपर्क किया है। इन राज्यों में उसकी तलाश की गई। आनदंपाल को पकड़ने के लिए पुलिस—एसओजी ने कई स्पेशल टीमों का गठन किया, जिसमें 30 से भी ज्यादा आईपीएस और आरपीएस स्तर के अफसरों ने काम किया।
और यूं हुआ आतंक का खात्मा :
हाल ही में पुलिस ने आनंदपाल के कुछ रिश्तेदारों को अरेस्ट किया था, जिनसे आनंदपाल के चुरू में होने की पुख्ता खबर मिली थी। इसके बाद पुलिस ने उसे घेरने की रणनीति बनाई और रतनगढ़ के पास मालासर में पुलिस टीम ने आनंदपाल को गिरफ्तार किए जाने का प्रयास किया। इस दौरान आनंदपाल की ओर से पुलिस पर फायरिंग की गई, जिसके चलते काफी देर तक गोलियां चली। आनंदपाल की ओर से की गई फायरिंग के बाद पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए उसका एनकांउटर कर दिया और उसे मार गिराया। इसके साथ ही आनंदपाल और उसके आतंक का खत्मा हो गया।
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